( तर्ज - परदेशीया मेरी अखियाँ ० )
तुम्हारे ही नामपर ,
हम जिन्दगी गुजारते ।
तुम्हारे ही सेवा खातिर ,
दुनिया पुकारते || टेक ||
नहीं तो हमारी कोई ,
हिंमत भी क्या है ।
बिना ग्यान - ध्यान कोई ,
मान ना दिया है ।
आलसी पडे रहते हम ,
भूखे दंड मारते ॥ १ ॥
सिखाये से पंछी ,
बोले पशू भी तो खेल खेले ।
उन्हीमें है हम भी सामिल ,
कैसे करेंगे अकेले ।
तेरी कृपा से ही जैसे ,
और भी उधारते ॥ २ ॥
फिर तो फिक्र किसको बोले ,
भेद भी किसी से खोले ।
आजके जगत में कोई ,
हीन दीन को क्या तोले ।
कहे दास तुकड्या तुमही ,
बिघडी सुधारते ।। ३ ।।
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